कई बार सोचता हूँ कि
जो सपने पूरे नहीं हो पाते
वो कहाँ जाते हैं
कभी न बरसने वाले,
रुई जैसे सफ़ेद बादलों के साथ
हवा में पिघल जाते हैं
या नन्हीं कश्तियों के कागज़ संग
पानी में घुल जाते हैं
नदी से अलग हुई धार में उतरकर
किसी पोखर में ठहर जाते हैं
या किसी आधी लिखी कविता के जैसे
कहीं पीले पन्नो में बिसर जाते हैं
जो सपने पूरे नहीं हो पाते
वो कहाँ जाते हैं...