तोड़ traffic के चक्रव्यूह को
प्राणों को धर वेदी पर
नित करता है सड़क पार
अभिमन्यु, धीर वीर और दक्ष
घूम कर देखो कभी
सरकारी दफ्तर के गलियारों में
एक समूचा इन्द्रप्रस्थ सा
प्रस्तुत करता प्रत्येक कक्ष
पड़ा नहीं पाला कभी दानवीर का
इन स्टेशन के भिकमंगो से
वरना कुंडल कवच के साथ साथ
खो देता अपने कर्ण वक्ष
खिंचते ही रहते हैं चीर यहाँ
रोज असंख्य द्रौपदियों के
बसों, ट्रेनों फुटपाथों पे
विवश पितामह के समक्ष
रण में दोनों ओर खड़ी
दुर्योधन कि सेना है
क्या करोगे कृष्ण आज
लोगे तुम किसका पक्ष
लोकतंत्र है यहाँ, यहाँ के सौ करोड़ सम्राट हैं
एक-दो नहीं यहाँ पर, सौ करोड़ ध्रितराष्ट्र हैं
गली-गली में है कुरुक्षेत्र,
लाक्षागृह हर एक इमारत है
जीवन में मची हुई रोज यहाँ
एक नई महाभारत है
कोई कौरव-पांडव का खेल नहीं
यह आधुनिक भारत है |
Monday, June 13, 2011
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