आशिकी में कुछ इस कदर बेबाक़ हो गई
परवाने से पहले शम्मा खुद ख़ाक हो गई
इतने जतन से की थी मिलने की तरकीब
बरसों की साजिश बस इक इत्तेफाक हो गई
बात , मेरे दिल में थी तो संजीदा थी
बज्म में उनकी गई तो मजाक हो गई
सोचा था फिर न कभी छेडेंगे ये फ़साना पर
जब कभी जाम मिला, रात मुश्ताक हो गई
Sunday, February 1, 2009
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