आशिकी में कुछ इस कदर बेबाक़ हो गई
परवाने से पहले शम्मा खुद ख़ाक हो गई
इतने जतन से की थी मिलने की तरकीब
बरसों की साजिश बस इक इत्तेफाक हो गई
बात , मेरे दिल में थी तो संजीदा थी
बज्म में उनकी गई तो मजाक हो गई
सोचा था फिर न कभी छेडेंगे ये फ़साना पर
जब कभी जाम मिला, रात मुश्ताक हो गई
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5 comments:
kya baat hai, kya baat hai, bohat achhe...
write more often.
kya baat hai, kya baat hai, bohat achhe...
write more often.
waaah... bahut khoob...:)
ye nazm to kamaal ki hai janaab...:)
iska to jawaab nahi....khubsoorat lafzon ke sahaare jazbaaton ko bade hi kareene se pesh kiya hai aapne...!!
good one...liked it :))
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