Sunday, August 14, 2011
स्वतंत्रता दिवस
सदियों से पिसते
गुलामी कि जंजीरों से घिसते
मन के घावों से रिसते
रहे कुछ सपने स्वतंत्र
असंख्य बलिदानों का
नई सुबह के अरमानो का
खंडित, आहत आत्म-सम्मानों का
अंततः स्थापित हुआ यह जनतंत्र
क्यों पर आज ये सपना फीका सा है,
वो आजादी का एह्साह क्या हुआ
वो आशाओं का उल्लास क्या हुआ?
क्यों ढह रहा है आँखों के आगे
भय स्वार्थ और भ्रष्टाचार
से खोखला होता लोकतंत्र
इन ढहती दीवारों से उठता
धूल का एक गुबार सा है
जो ढक रहा आज़ादी का सूरज
मन में फिर एक अन्धकार सा है
करें कुछ ऐसा जतन
जहाँ मन हो स्वतंत्र
भारत बने एक ऐसा मनतंत्र
Monday, June 13, 2011
महाभारत एक खोज
तोड़ traffic के चक्रव्यूह को
प्राणों को धर वेदी पर
नित करता है सड़क पार
अभिमन्यु, धीर वीर और दक्ष
घूम कर देखो कभी
सरकारी दफ्तर के गलियारों में
एक समूचा इन्द्रप्रस्थ सा
प्रस्तुत करता प्रत्येक कक्ष
पड़ा नहीं पाला कभी दानवीर का
इन स्टेशन के भिकमंगो से
वरना कुंडल कवच के साथ साथ
खो देता अपने कर्ण वक्ष
खिंचते ही रहते हैं चीर यहाँ
रोज असंख्य द्रौपदियों के
बसों, ट्रेनों फुटपाथों पे
विवश पितामह के समक्ष
रण में दोनों ओर खड़ी
दुर्योधन कि सेना है
क्या करोगे कृष्ण आज
लोगे तुम किसका पक्ष
लोकतंत्र है यहाँ, यहाँ के सौ करोड़ सम्राट हैं
एक-दो नहीं यहाँ पर, सौ करोड़ ध्रितराष्ट्र हैं
गली-गली में है कुरुक्षेत्र,
लाक्षागृह हर एक इमारत है
जीवन में मची हुई रोज यहाँ
एक नई महाभारत है
कोई कौरव-पांडव का खेल नहीं
यह आधुनिक भारत है |
प्राणों को धर वेदी पर
नित करता है सड़क पार
अभिमन्यु, धीर वीर और दक्ष
घूम कर देखो कभी
सरकारी दफ्तर के गलियारों में
एक समूचा इन्द्रप्रस्थ सा
प्रस्तुत करता प्रत्येक कक्ष
पड़ा नहीं पाला कभी दानवीर का
इन स्टेशन के भिकमंगो से
वरना कुंडल कवच के साथ साथ
खो देता अपने कर्ण वक्ष
खिंचते ही रहते हैं चीर यहाँ
रोज असंख्य द्रौपदियों के
बसों, ट्रेनों फुटपाथों पे
विवश पितामह के समक्ष
रण में दोनों ओर खड़ी
दुर्योधन कि सेना है
क्या करोगे कृष्ण आज
लोगे तुम किसका पक्ष
लोकतंत्र है यहाँ, यहाँ के सौ करोड़ सम्राट हैं
एक-दो नहीं यहाँ पर, सौ करोड़ ध्रितराष्ट्र हैं
गली-गली में है कुरुक्षेत्र,
लाक्षागृह हर एक इमारत है
जीवन में मची हुई रोज यहाँ
एक नई महाभारत है
कोई कौरव-पांडव का खेल नहीं
यह आधुनिक भारत है |
Tuesday, April 26, 2011
Because you are so beautiful!
Like sweet vagueness
of half forgotten early morning dream
Like sparkling charm
of a careless youthful stream
Like in a crowded strange land
comfort of holding a familiar hand
Like the liberating smell of early summer rain
or on a sad noon, soothing sound of a distant strain
Like a heart can feel all that
and much more, at a slight
sure love can happen
and has happened at first sight
of half forgotten early morning dream
Like sparkling charm
of a careless youthful stream
Like in a crowded strange land
comfort of holding a familiar hand
Like the liberating smell of early summer rain
or on a sad noon, soothing sound of a distant strain
Like a heart can feel all that
and much more, at a slight
sure love can happen
and has happened at first sight
Sunday, March 20, 2011
Holi
Slowly climbs the crimson sun
from behind the sullen crimson domes
This way and that he peers and sees
crimson people in crimson homes
Beaming through the crimson mist engulfing town
Glistening briskly in crimson brooks gurgling down
Slanting its rays upon a crimson tower,
from where leaps a crimson cascade
to greet the street with a crimson shower
then drips from her hairs on to cheeks
like drops of dew on a crimson flower
Warmth of spring and smell of husk
There's a crimson shade in my crimson bower
from behind the sullen crimson domes
This way and that he peers and sees
crimson people in crimson homes
Beaming through the crimson mist engulfing town
Glistening briskly in crimson brooks gurgling down
Slanting its rays upon a crimson tower,
from where leaps a crimson cascade
to greet the street with a crimson shower
then drips from her hairs on to cheeks
like drops of dew on a crimson flower
Warmth of spring and smell of husk
There's a crimson shade in my crimson bower
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